Saturday, April 27, 2019

झुंझार जी रामसिंघ कांधलोत री बात

*झुंझार रामसिंघजी कांधलोत*

@अजयसिंघ राठौड़ सिकरोड़ी

राजस्थान री इण मरुधरा रै मांय अलेखूं सुरवीर हुया है जिका आपरी आण बाण शाण अर सनातन धरम री पालणा सारू आपरी देह होम दी अर केईक सूरां देश धर्म भोम अर गायां री रिख्या खातर आपरौ जीवन न्योछावर कर दियौ अर लोक रै मांय अमर हुयग्या जिणरी लोक मांय अजै भी पूजा हुवै अर गीतां छंदा दूहा सोरठा मांय गाईजे ऐड़ा सुरवीर भोमिया झुंझार अर लोक देवता रै रूप मांय गांव गढ़ा  रै गौरवै देवलिया छतरियां देवरां अर चबूतरां माथै विराज्योड़ा आपरी गौरव गाथावां सूं गांव समाज सनातन धर्म अर आपरै कुळ नै गौरवान्वित करै।
ऐड़ा ई ऐक सुरवीर हा भादरा रा सुरवीर राजा लालसिंघ कांधलोत रा बेटा रामसिंघ जी कांधलोत  जिका लोक अर प्रकृति रै साथै ई पशु पक्षियों रा प्रेमी अर इणी कारण शायद कुँवर पदे वीरगति नै वरण करियौ।इणरी पूरी गाथा रो विवरण इतियास मांय नीं मिलै।पण लोककथावां रातिजगा रै गीतां मांय जरूर गाईजे।
लोक मुजब रै मुताबिक भादरा परगना रै गांव निठाना(नेठराना) मांय झगड़ो हुयौ जद कुँवर रामसिंघ व्हार चढ़िया उण टेम सुगण आछा नीं हुया जणा नगरी रा लोगां कैयो कै अबै आप थोड़ा ढब ज्यावो।इण बात रो साखी ओ गीत है जिको अठै री लुगायाँ रातिजगा मांय गावै।

गीत

निठाणे बाजा बाजिया,
भादरा घुरैया रै निशान।
थै मत जावो राजा रामसिंघ राड़ में।।
गढ़ मांय बरजै रानियाँ,
बा'यर नगरी रा लोग।
थै मत जावो राजा रामसिंघ राड़ में।।
छींकत घुड़ला छेड़िया,
बरजत लिया हथियार।
थै मत जावो राजा रामसिंघ राड़ में।।...

रणवासे मांय रानियां अर बा'यर नगरी रा लोगां घणो कैयो पण सूरो मान्यो कोनी अर मानें बी किंया रंग चढ़ियोड़ो किणरी सुणे अर पछै कुँवर रामसिंघ तो राव चूंडाजी रा पोतरा रावत कांधल जी राठौड़ री वंश परम्परा मांय राजा लालसिंघ जी रो चावो सुरवीर हो जिकै बीकानेर महाराज नै बी डांण नीं दियौ हो।जिणरै माथै दुलदान जी खिडिया रो ओ दूहो जग चावो है।

"अडली तो बिडली अठै,जडली खाग जलाल।
पिण्ड उभा डण्ड ना भरै, लाखां वालो लाल।।"

अबै कहाणी माथै पाछो आवां।निठाणा माथै राड़ रो सुण रामसिंघजी घणा कोफ़ मं आया व्हार रो रंग चढ़ियो लोगां घणी मनवारां करी पण रंग चढ़ग्यो तो चढ़ग्यो।सुरवीर रै रण रा डंका बाजतां ई रंग चढ़ ज्यावै जिको कै तो रण जीत्या उतरै अर कै मरियां कविराज गंग बी आपरै छन्द मांय कैयो है।

"तारां तेज मांहि चन्द छिपे नह,
सूरज छिपे नह बादल छाया।
चंचल नार का नैण छिपे नह,
प्रीत छिपे नह पीठ दिखाया।
रण आयां रजपूत छिपे नह,
दातार छिपे नह घर मंगत आया।
कवि गंग कहै सुण शाह अकबर,
कर्म छिपे नं भभूत लगाया।।"

नगरी रा लोग अर रानियां बरजती रैयी पण सुरो मान्यो नीं आपरा हथियार पाती लेय घोड़ा असवार हुय निठाणा जाय दुसमियां नै जाय ललकारिया।

ढमढम ढोलक ढमकिया,पग पग बाज्या पौड़।
रण जद चढ़िया रामसी,रणबंको राठौड़।।1।।

मारण दुसमी मोकळा,तड़ तड़ ताबड़तोड़।
घोड़े चढ़ियो गाबरू,रणबंको राठौड़।।2।।

मुदरो बोल्यो मोरियो,संग में चल्यो स्वान।
गांव निठाणे गौरवे,घणो मच्यो घमसाण।।3।।

राड़ मची हद जोरगी,हुयी ज हाहाकार।
मरघट माची मोकळी,तीरां अर तरवार।।4।।

दड़ बड़ घोड़ा दौड़िया,पड़ पड़ बाज्या पौड़।
भळ भळ भालो भळकतो,फट दे मुंडी फोड़।।5।।

रण में रमियो सूरमों,कर धारी किरपाण।
भुजा विराजी भगवती,देसाणा धणियाण।।6।।

घणो घमासाण माच्यो अर रामसिंघ घणा सूरापण सूं लड़िया सिर रा बाळ खड़या हुयग्या अर पागड़ी ऊंची उठगी भुजावां फड़कन लागी धरा डगमगा उठी अर काळी आपरौ खप्पर भरण लागी सँवली आकाश मांय घेरो लगाय दियौ अर बावन भैरुँ मृदंग री ताळ माथै नाचण लाग्या भोमिया हर्खित हुय'र कमधज नै जुद्ध लड़ते हुए देख रहे हैं।रामसिंघ जी जबरो जुद्ध लड़ियों।

डगमग धरती डगमगी,खड्या हुयग्या केश।
खड़खड़ हांसी कालका,सज विकराळो भेष।।7।।

डग भर भैरव डमकता सँवली उड़े अकाश।
भेळा देखै भोमिया,कमधज लड़तो खास।।8।।

सिर जद पड़ियो सूरमों, लिन्यो धरणी झाल।
कबंध लड़ियों कमधजो,लाले वालो लाल।।9।।

अजय कमधज आपनै,करै नमन करजोड़।
सदा रुखालो रामसी,रणबंका राठौड़।।10।।(अजयसिंह राठौड़ कृत)

छेवट केई दुसमी मारै नै रामसिंघ जी रो सिर कट नै धरणी माथै पड़ियो पण कबंध फेर बी लड़तो रैयो।सिर कटिया पछै बी झुंझार होय केई दुसमी मारिया।निठाणां सूं भादरा दस इग्यार कोस आंतरै पड़े जठै रामसिंघ जी रो धड़ घोड़ा माथै लड़तो थको आवियो नै भादरा रै अगुणी दिखणादी कुंट मांय नाथवाणा जोहड़ा री पाळ माथै आय पड़ियो जठै उणरो दाग हुयौ जिण माथै छतरी बणियोड़ी है अर छतरी रै द्वार रै एक पासै काळा कुत्ता अर बीजै पासै मोर री मूरत थरपीजेडी है लोक अर किवंदंतियों रै मुजब ऐ कुत्ता अर मोर बी रामसिंघ जी रै साथै झुंझार हुया बताइजे अर इणरी बी धोक लागै आज बी आसा पासा रा बामण बाणिया राजपूत अर बीजा लोगबाग धोक देवै अर सिरणी चढावै लुगायाँ रातिजगा मांय झुंझार जी रा गीत गावै।आज रै बखत रामसिंघजी कांधलोत झुंझार जी री छतरी भादरा कल्याण भूमि मांय है।
इणरी और ज्यादा ऐतिहासिक जानकारी नीं मिले सा।
लेखन अर प्रस्तुति:-अजयसिंघ राठौड़ सिकरोड़ी।।
मो.9928483906
दिनांक 23मार्च2019

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