*भगवती करणीजी अर रावत कांधलजी राठौड़*
(भाग 2)
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@अजयसिंह राठौड़ सिकरोड़ी
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दसरावै रै दिन राव जोधाजी रो दरबार लाग्योडो सगळा दरबारी अर राठौड़ सिरदार आप आपरी ठौड़ बिराजमान। बाहर सूं कुंवर बीको आय'र आपरै काकोसा रावत कांधलजी सूं कीं कानां बाती करण लाग्या उणी टेम राव जोधाजी बौल मारियो।
"आज तो काको भतीजे घणी गैरी बात करै जाणू नूवो राज ढ़बावसी"।
जणा रावत कांधलजी खड़या होय कैयो कै म्हे तो अयाँ ई बात करे हा पण आपरी आ ही आज्ञा है तो नूवो राज ढबाय'र ई आपरा दरसण करस्यू।इण तरियां रावत कांधलजी जोधाजी रै एक बौल माथै आपरै भतीजे बीकाजी नै लेय'र जोधाणों छोड़ दिन्यो।
एक बौल रै कारणें, दियौ जोधाणों छोड़।
कांधल सूरो कमधजो, रणबंको राठौड़।।1।।
दड़ बड़ घोड़ा दौड़िया,जांगल धर पे जौर।
राज नुवो थरपायनै,ठावी बांधा ठौर।।2।।(अजय सिकरोड़ी)
रावत कांधलजी नुंवो राज ढ़बावण री मनड़ा मांय धारनै जांगल देस रो गेलो लिंयो अर चालतां थकां माँ भगवती करणीजी री छत्र छाया मांय आय पुग्या अर भगवती नै आपरी व्यथा बतायनै अरज किंनी कै म्हूँ म्हारै भतीज बीका नै राजा बणावण रो प्रण कियौ है अर अबै आपरै आशीर्वाद री आस करनै आपरी शरण मांय आया हां।अबै आप आसीस दिरावौ।
कांधल नै करणी कहे,उमगे दे आसीस।
बीका तुं जल्दी बणे, धर बीकाणा धीस।।1।।
कांधल घण तपस्या करी,भूप बणाण भतीज।
कुंवर बीक अरजी करी,रिधु मरजी कर रीज।।2।।(भँवरदानजी माडवा)
बिशहथी ओ बीक नै, इण मुख कहियो आप।
कांधल री करवाल बल,थाट पाट तुं थाप।।(गिरधरदानजी दासोड़ी)
पछै भगवती रै आदेस सूं कोडमदेसर जाय रैया अर आपरी सगती बढ़ावणी सुरू किंनी इण बीच माँ करणीजी री आज्ञा सूं कुंवर बीकै रो ब्याव पूगल रा राव सेखा री राजकुंवरी रँगकुंवरी रै साथै कियौ।
रावत कांधलजी जल्दी सूं जल्दी राज ढ़बावण री जुगत मांय लाग्या रेंवता क्यूँ कै अबै टेम घणो बीत चूक्यो हो अर उणरी कनपटी रा बाळ भी धोलापो दिखावण लाग्या हा।उणी बगत उणरा आदमियाँ बतायौ कै घोड़ा रो एक ब्योपारी गुजराती चारण आयोडो है जिणरै कनै घणा बढ़िया अर तगड़ी नस्ल रा काठियावाड़ी घोड़ा है जै बै आपां नै मिल ज्यावै तो आपणी सगती दूगणी हुय ज्यावै।जद कांधलजी उण ब्योपारी कनै गया जिणरो नांव जीवराज चारण हो अर उणरा सगळा घोड़ा खरीद लिया अर उणरा घणकरा रिपिया देय दिन्या ,रकम किं ज्यादा बणी अर अतरा रिपिया उण बगत हा कोनी जद रावत कांधलजी जीवराज चारण नै नौ हजार बीघा जमीन रो गांव छोटड़िया जागीर मांय देय दियौ।जीवराज चारण राजी होय छोटड़िया जाय रैयो,पण आस पास रा बीजा चारणां उणरै साथै व्योवार ठीक नीं करियो जिण सूं वो तावळो ई दुखी हुयग्यौ
अर पाछो कांधलजी कनै आय'र कैयो कै थै थारौ गांव पाछो लेल्यो अर म्हानै म्हारी रकम देय दयौ जद कांधलजी दुविधा मांय फँसग्या क्यू कै अतरी रकम कठै सूं ल्यावै क्यू कै अबै तांई तो उठाऊ डेरा ई हा अजै तांई राज री थापना ई नीं हुवी ही,अर जितरा रोकड़ा नगदी हा बै तो जीवराज नै पेल्या ई देय चुक्या हा जद कांधलजी कैयो कै इंया किंया होय सकै है।अबै तो थै ओ गांव ई राखो पण जीवराज मान्यो कोनी हट करनै कांधलजी रै बारणे(द्वार) पोळ माथै धरणों देय बेठग्यो।
उण बगत राजपूत रै द्वार पर चारण धरणों राजपूत खातर घणी माड़ी बात हूंवती अर बा भी कांधलजी जेड़ा परमत्यागी शूरवीर रै द्वार पर।
कांधलजी धरम संकट मांय पड़ग्या अबै करै तो कांई करै एक चारण उणरै द्वार पर धरणों देय भूखो बैठ्यो।उण टेम कांधलजी नै भगवती करणीजी री याद आयी कै इण मुसपत सूं माँ करणीजी ई बचाय सकै जद पाँच सात घुड़सवारां रै साथै कुंवर बीकाजी नै देशनोक करणीजी कनै भेजिया अर अरज करवायी कै मातेश्वरी इण मुसपत सूं आप ई उबार सको बाकी किणी रै बस री बात नीं है।कुंवर बीके भगवती नै सगळी बात बताय मुसपत रो निवारण करण री अरज किंनी।
करणी सूं कांधल कहे,बेगा सुणज्यो बात।
मुसपत माजी मेट नै, हरदम रख सिर हाथ।।1।।
करणी थां पे कमधजो,वडो रखै विसवास।
मुसपत मेटै मावड़ी,आई सुण अरदास।।2।।(अजय सिकरोड़ी)
करणीजी आपरै साचै सेवग री अरदास सुणतां पांण एक घुड़सवार जीवराज चारण नै बुलावण सारू भेजियो।
जीवराज भी करणीजी रो आदेस मिलतां ई धरणों छोड़ देशनोक भगवती रै चरणों मांय जाय हाजर हुय दण्डोत किंनी।जद करणीजी बोल्या कै हे जीवराज कांधलजी एक साचो अर त्यागी प्रण पालक राजपूत है अर चारण राजपूत सनातन परंपरा रो निभावणहार है।तुं उणरै बारणे(द्वार) धरणों किंया देवै है।जद जीवराज कैयो कै हे मातेश्वरी ओ ठाव तो म्हानै भी है पण अठै रा चारण म्हारो मान सम्मान नीं करै अर म्हानै आप सूं कमसल मांनै अर म्हारै सूं ब्योवार नीं राखै जणा हूं उण जमीन रो कांई करूँ इण सारू कांधलजी सूं म्हारी रकम दिराय दयो तो हूं पाछो म्हारै देस जावूं।जद भगवती बोल्या कै देवी रा सगळा पुत्र बरोबर है कोई चारण छोटो बड़ो नीं हुवै।अबै म्हूं थानै अपणाय ल्येसूं तो बाकी सगळा चारण भी अपणाय लेय सी।पछै भगवती करणीजी आपरी पोती सापुबाई जो करणीजी रै छोटे पुत्र लाखन री बेटी ही उणरो रो ब्याव जीवराज रै साथै कर दियौ।अर जीवराज पाछो छोटड़िया जाय रैयो।इण तरु भगवती करणीजी एक पंथ दो काज री कैेबत पूरी करी एक ओर अपने परमप्रिय भगत रावत कांधलजी की दुविधा मिटाई तो दूजी ठौड़ जीवराज नै अपणाय चारणां मांय छोटे बड़े रो भेद मिटायो।
जीवराज चारण रै नो हजार बीघा जमीन रो छोटड़ियो गांव रावत कांधलजी री जबान पर ई कई पीढ़ी चालतो रैयो जिणरो तांबापत्र पछै राव जैतसी रै बगत मांय दियौ गयौ।
इण तरियां भगवती करणीजी आपरै परमभगत रावत कांधलजी री जबान री लाज रखी।जदै तो कैवे
किरपा राखै करनला,आवड़ पूरै आस।
भजियां भगती भाव सूं, अवस सुणे अरदास।।
@अजयसिंह राठौड़ सिकरोड़ी
जय माँ करणीजी, जय हो रावत कांधलजी महाराज
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