Saturday, September 8, 2018

दूहा(दोहा) सोरठा छन्द विधान

काव्य रचना की पहली सीढ़ी(सोपान) है, दूहा और सोरठा।यहां मैं काव्य सृजन करने के इच्छुक नवाचारों के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दे रहा हूँ, इससे वो भाई बन्धु जो काव्य बनाना सीखना चाहते हैं उनके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दे रहा हूँ और आशा करता हूँ कि यह जानकारी काव्य सृजन सीखने वालों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।मैं अजयसिंह राठौड़ सिकरोड़ी आपके उत्तम काव्य सृजन की कामना करता हूँ।
इसलिए आप पहले दोहे बनाने सीखें।
दोहे बनाने का विधान इस प्रकार से है।
दोहा में चार पद होते हैं जो इस प्रकार से है।

13 मात्रा का प्रथम पद
11 मात्रा का दूसरा
13 का तीसरा और11 मात्रा का चौथा पद
इस प्रकार
13,11
13,11
का एक दोहा होता है।
उदाहरण के लिए
प्रथम पद :– किरपा कीजै करनला
मात्रा ज्ञान:--1,12  2,2  1,1,1,2

दूसरा पद
सगती दीजै साथ
1,12,  2,2 2,1
तीसरा पद

अम्बा सरणों  आपरो
2,2   1,1,2   2,1,2
चौथा पद

आई  आवड़  नाथ
2,2   2,1,1   2,1

इन चारों को मिलाये।

किरपा कीजै करनला, सगती दीजै साथ।
अम्बा सरणों आपरो,आई आवड़ नाथ।।
ये पूर्ण दोहा हो गया।

आई सिंवरु आपनै, नित उठ सीस नवाय।
चरणों दीजै चाकरी,मेहाई महमाय।।

इसको इस प्रकार समझें

आई   सिंवरु   आपनै,
2,2    2,1,1   2,1,2

नित उठ सीस नवाय
1,1 1,1 2,1  1,2,1

चरणों   दीजै   चाकरी,
1,1,2   2,2     2,1,2

मेहाई   महमाय
2,2,2   1,1,2,1

और फिर चारों को मिलाने पर ये दोहा बन जायेगा

आई सिंवरु आपनै, नित उठ सीस नवाय।
चरणों दीजै चाकरी,मेहाई महमाय।।

शुरुआत में आप उपरोक्त पोस्ट को देखकर हिंदी में भी लिख सकते हैं

अब कुछ शब्दों की मात्रा विधान व लघु गुरु  की जानकारी।

कंघा
गुरु गुरु

कही
क लघु
ही  गुरु

यानी बड़ी मात्रा वाला गुरु कहलाता है।
बिंदु वाला अक्षर गुरु कहलाता है।
आधा व् पूरा सयुंक्त अक्षर बिना मात्रा के भी गुरु कहलाता है।

दोहा
प्रथम चरण व् तीसरा चरण  13 मात्रा
दूसरा व् चौथा चरण 11 मात्रा
अंत गुरु लघु से होगा

लघु मात्रा को 1 से व् गुरु मात्रा को 2 से भी इंगित किया जाता है जैसे
कही
12
राजा
22
कहानी
122
राजा राम जानकी रानी
22  22   212   22
अंबे।   तू है  अंबिका
22     2 2  212
अंतस री आधार
211   2   22 1

कल्प भवानी मां मंदी

जग की पालन हार
11 2    211  2 1
दया राखजे  दास पे
12   212      21 2
आधा अक्षर रिपीट होगा तो ही गुरु होगा
क़्क़
ल्ल
ज्ज
लज्ज
कल्प भवानी मां मंदी

11 122 2 22
लाज
21
कल्ल
21

आधा पहले वाले को गुरु बनायेगा
चन्द्र बिंदी वाला लघु होगा
दोहा

प्रथम चरण व् तीसरा चरण  13 मात्रा
दूसरा व् चौथा चरण 11 मात्रा
अंत गुरु लघु से होगा

हँस
11
काज
लाज
हंस
21
थंब
साथ
हाथ
गल्ल
हल्ल
कब्ब
अब्ब
जहाज
भाज
हंस
मंस

कल्प
11

राम
21

मात्रा पर यदि ध्यान देने मात्र से काव्य की सफलता मानी जाती तो आज सूर का वो अप्रतिम वात्सल्य का कौन रसास्वादन करता।

केशव को हिन्दी साहित्य में "कठिन काव्य का प्रेत"कहा जाता है। लेकिन उनकी "रामचन्द्रिका "
को वो सफलता नहीं मिली जो तुलसी के "रामचरितमानस" को मिली।

स्पष्ट है काव्य शुद्धता से ज्यादा जन समुदाय के लिए हृदयांगम होना चाहिए।

(१) ह्रस्व स्वरों की मात्रा १ होती है जिसे लघु कहते हैं , जैसे - अ, इ, उ, ऋ
आधा अक्षर रिपीट होगा तो ही गुरु होगा
क़्क़
ल्ल
ज्ज
(४) व्यंजन में ह्रस्व इ , उ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार १ ही ~रहती~ रहता है

(२) दीर्घ स्वरों की मात्रा २ होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे-आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ

(६) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
.... जैसे - रँग=११ , चाँद=२१ , माँ=२ , आँगन=२११, गाँव=२१

(३) व्यंजनों की मात्रा १ होती है , जैसे -
.... क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ,ञ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म /
.... य,र,ल,व,श,ष,स,ह

(५) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार
.... २ हो जाता है

(७) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार २ हो जाता है , जैसे -
.... रंग=२१ , अंक=२१ , कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२

(८) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
.... जैसे - नहीं=१२ , भींच=२१ , छींक=२१ ,
.... कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं,

(१०) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार १ (लघु) ही रहता है ,
..... जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११, श्रुति=११

(१२) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
..... जैसे - नम्र=२१ , सत्य=२१ , विख्यात=२२१

(९) संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे - स्वर=११ , प्रभा=१२
.... श्रम=११ , च्यवन=१११

(१४) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (१२) के कुछ अपवाद भी हैं , जिसका आधार  
..... पारंपरिक उच्चारण है , अशुद्ध उच्चारण नहीं !
..... जैसे- तुम्हें=१२ , तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२, 
..... कुम्हार=१२१, कन्हैया=१२२ , मल्हार=121
(११) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
..... जैसे - भ्राता=२२ , श्याम=२१ , स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,

हिन्दी छन्द रचना के लिए छन्द शास्त्र की मूल बातों से परिचित होना आवश्यक है 
छन्द वह नियम है जिसके अंतर्गत हम निश्चित मात्रा संख्या अथवा निश्चित मात्रा पुंज (गण) अथवा निश्चित वर्ण संख्या के आधार पर कोई काव्यात्मक रचना लिखते हैं 

छन्द की परिभाषा 
मात्रा, वर्ण की रचना, विराम गति का नियम और चरणान्त में समता जिस कविता में पाई जाते हैं उसे छन्द कहते हैं |

छन्द लिखने के लिए छन्द शास्त्री होना चाहिए, ऐसा आवश्यक नहीं है परन्तु छन्द की मूलभूत बातों तथा जिस छन्द विशेष में हम रचनारत हैं उसके मूल विधान से परिचित होना आवश्यक है 
आईये शुरू से शुरू करते हैं 

वर्ण
वर्ण दो प्रकार के होते हैं 
१- हस्व वर्ण 
२- दीर्घ वर्ण 

१- हस्व वर्ण - हस्व वर्ण को लघु मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में १ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "|" है|   

२- दीर्घ वर्ण - दीर्घ वर्ण को घुरू मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में २ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "S" है 

मात्रा-
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं जो समय हस्व वर्ण के उच्चारण में लगता है उसे एक मात्रिक मानते हैं इसका मानक हम "क" व्यंजन को मान सकते हैं क उच्चारण करने में जितना समय लगता है उस उच्चारण समय को हस्व मानना चाहिए| जब किसी वर्ण के उच्चारण में हस्व वर्ण के उच्चारण से दो गुना समय लगता है तो उसे दीर्घ वर्ण मानते हैं तथा दो मात्रिक गिनाते हैं जैसे - "आ" २ मात्रिक है  

याद रखें - 
स्वर = अ - अः 
व्यंजन = क - ज्ञ 
अक्षर = व्यंजन + स्वर 
 
यदि हम स्वर तथा व्यंजन की मात्रा को जानें तो - 
अ इ उ स्वर एक मात्रिक होते हैं
क - ह व्यंजन एक मात्रिक होते हैं 
यदि क - ह तक किसी व्यंजन में इ, उ स्वर जुड जाये तो भी अक्षर १ मात्रिक ही रहते हैं
उदाहरण - कि कु १ मात्रिक हैं  
अर्ध चंद्रकार बिंदी युक्त स्वर अथवा व्यंजन १ मात्रिक माने जाते हैं 
कुछ शब्द देखें - 
कल - ११ 
कमल - १११ 
कपि - ११  
अचरज - ११११ 
अनवरत १११११ 

आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः स्वर दीर्घ मात्रिक हैं 
यदि क - ह तक किसी व्यंजन में आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः स्वर जुड जाये तो भी अक्षर २ मात्रिक ही रहते हैं
उदाहरण - ज व्यंजन में स्वर जुडने पर - जा जी जू जे जै जो जौ जं जः २ मात्रिक हैं  
अनुस्वार तथा विसर्ग युक्त स्वर तथा व्यंजन भी दीर्घ होते हैं  
कुछ शब्द देखें - 
का - २ 
काला - २२ 
बेचारा - २२२ 

अर्ध व्यंजन की मात्रा गणना
अर्ध व्यंजन को एक मात्रिक माना जाता है परन्तु यह स्वतंत्र लघु नहीं होता यदि अर्ध व्यंजन के पूर्व लघु मात्रिक अक्षर होता है तो उसके साथ जुड कर और दोनों मिल कर दीर्घ मात्रिक  हो जाते हैं
उदाहरण - सत्य सत् - १+१ = २ य१ अर्थात सत्य = २१
इस प्रकार कर्म - २१, हत्या - २२, मृत्यु २१, अनुचित्य - ११२१, 

यदि पूर्व का अक्षर दीर्घ मात्रिक है तो लघु की मात्रा लुप्त हो जाती है 
आत्मा - आत् / मा २२ 
महात्मा - म / हात् / मा १२२

जब अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तो भी यही नियम पालन होता है अर्थात अर्ध व्यंजन की मात्रा लुप्त हो जाती हैं | 
उदाहरण - स्नान - २१ 

एक ही शब्द में दोनों प्रकार देखें - धर्मात्मा - धर् / मात् / मा  २२२   

अपवाद - जहाँ अर्ध व्यंजन के पूर्व लघु मात्रिक अक्षर हो परन्तु उस पर अर्ध व्यंजन का भार न् पड़ रहा हो तो पूर्व का लघु मात्रिक वर्ण दीर्ग नहीं होता
उदाहरण - कन्हैया - १२२ में न् के पूर्व क है फिर भी यह दीर्घ नहीं होगा क्योकि उस पर न् का भार नहीं पड़ रहा है 

संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं    
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१ 
गोत्र = २१, मूत्र = २१, 
यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं 
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२  
संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं  
उदाहरण = प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२,  

क्योकि यह लेख मूलभूत जानकारी साझा करने के लिए लिखा गया है इसलिए यह मात्रा गणना विधान अति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है 
अब कुछ शब्दों की मात्रा देखते हैं 

छन्द - २१ 
विधान - १२१ 
तथा - १२ 
संयोग - २२१ 
निर्माण - २२१
सूत्र - २१ 
समझना - १११२ 
सहायक - १२११ 
चरण - १११ 
अथवा - ११२ 
अमरत्व - ११२१

गण
छन्द विधान में गुरु तथा लघु के संयोग से गण का निर्माण होता है | यह गण संख्या में कुल आठ हैं| गण का सूत्र इन्हें समझने में सहायक है 
सूत्र - य मा ता रा ज भा न स ल गा  
     
सूत्र सारिणी 
 १ -य - यगण - यमाता - १२२ - हमारा, दवाई 
२ - मा - मगण - मातारा - २२२ - बादामी, बेचारा 
३ - ता - तगण - ताराज - २२१ - जापान, आधार 
४ - रा - रगण - राजभा - २१२ - आदमी, रोशनी 
५ - ज - जगण - जभान - १२१ - जहाज, मकान    
६ - भा - भगण - भानस - २११ - मानव, कातिल  
७ - न - नगण - नसल - १११ - कमल, नयन  
८ - स - सगण - सलगा - ११२ - सपना, चरखा 

चरण तथा पद
प्रत्येक छन्द में चरण अथवा पद अथवा चरण+पद होते हैं 
एक पंक्ति को पद तथा एक पद में यति/गति अर्थात विश्राम के आधार पर चरण होते हैं जैसे दोहा मात्रिक छन्द में देखें 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर 
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर 

इस छन्द में दो पंक्ति अर्थात दो पद हैं |

बड़ा हुआ तो क्या हुआ / जैसे पेड़ खजूर
प्रत्येक पद में एक विश्राम है इसलिए प्रत्येक पद में दो चरण हैं 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ / जैसे पेड़ खजूर 
पंथी को छाया नहीं / फल लागे अति दूर 
(कुल दो पद में कुल चार चरण हैं )

बड़ा हुआ तो क्या हुआ - प्रथम चरण 
जैसे पेड़ खजूर - द्वितीय चरण
पंथी को छाया नहीं - त्तृतीय चरण 
फल लागे अति दूर - चतुर्थ चरण

प्रथम तथा तृतीय चरण को विषम चरण कहते हैं 
द्वितीय तथा चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं 

जिस छन्द के पंक्ति में विश्राम नहीं होता है उसमें चरण नहीं होते केवल पद होते हैं जैसे चौपाई छन्द में ४ पंक्ति अर्थात ४ पद होते हैं परन्तु पद को पढते समय पद के बीच में विश्राम नहीं लेते इसलिए इसके पदों में चरण नहीं होते 

छन्द के प्रकार 
मुख्यतः छन्द के दो प्रकार होते हैं 
१- वर्णिक छन्द 
२- मात्रिक छन्द

१ - वर्णिक छन्द - जैसा कि आपने जाना गण आठ प्रकार के होते हैं 
जब हम किसी गण को क्रम अनुसार रखते हैं तो एक वर्ण वृत्त का निर्माण होता है 
जैसे - रगण, रगण, रगण, रगण तो इसकी मात्रा होती है - २१२, २१२, २१२, २१२ 
इस मात्रा क्रम के अनुसार जब हम कोई काव्य रचना लिखते हैं तो उस रचना को वर्णिक छन्द कहा जायेगा 
उदाहरण - भुजंगप्रयात छन्द - का विधान देखें - यगण यगण यगण यगण अर्थात -
१२२ १२२ १२२ १२२ 

अरी व्यर्थ है व्यंजनों की लड़ाई 
हटा थाल तू क्यों इसे आप लाई 
वही पाक है जो बिना भूख आवे 
बता किन्तु तू ही उसे कौन खावे - (साकेत)

मात्रा गणना 
अरी व्य / र्थ है व्यं / जनों की / लड़ाई 
हटा था / ल तू क्यों / इसे आ / प लाई 
वही पा / क है जो / बिना भू / ख आवे 
बता किन् / तु तू ही / उसे कौ / न खावे 

(वर्णिक छन्द के कई भेद होते हैं )

२ मात्रिक छन्द - 
जिस छन्द में गण क्रम नहीं होता बल्कि वर्ण संख्या आधार पर पद तथा चरण में कुल मात्रा का योग ही समान रखा जाता है उसे मात्रिक छन्द कहते हैं 

उदाहरण - चौपाई छन्द - विधान - ४ पद, प्रत्येक पद में १६ मात्रा 
 
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर 
जय कपीस तिहुं लोक उजागर 
राम दूत अतुलित बल धामा 
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा  

मात्रा गणना
ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१  ज्ञा२ न१  गु१ न१  सा२ ग१ र१  = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१   = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१  ब१ ल१  धा२ मा२   = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२     = १६ मात्रा
 
(१३) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
..... जैसे - हास्य=२१ , आत्मा=२२ , सौम्या=२२ , शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.

सही और सटीक दुहे।

ईसको पढ़कर आप सीख सकते है सा
दो तीन बार पढ़ेंगे तो समज जायेंगे सा
और कमी काढ़ने वालों की तो भरमार है
फिर सबसे जरूरी है।
उदाहरण के लिए ये दोहा देखें सा
वैण सगाई
प्रथम तो दुहे मे

प्रथम चरण मे13
दूसरे मे11
तीसरे मे13
और चोथे मे11
मात्राएँ होती है।

इसी तरह दूसरे मे ज और ज
प्रथम चरण मे

करणी करणी कीजिए,

प्रथम शब्द का पहला अक्षर क और अंतिम शब्द का पहला अक्षर क
ये वैण सगाई है।
हनुमान सिंह राठौड़ सवाईगढ़: करणी करणी कीजिए,जप नित मन सूं जाप।
डाढाली माँ डोकरी,सगळा हरै संताप।।

चौथे मे स और स
तीसरे में ड और ड
इसे वैण सगाई कहते है
प्रथम चरण की तरह तीसरे चरण का विधान है।यानि इसी तरह होगा
इसी तरह लघु दीर्घ मात्रा का भी ध्यान रखना जरूरी है।
प्रथम चरण के अंतिम शब्द मे दीर्घ लघु दीर्घ आना चाहिए।

उदाहरण

कीजिए ,
यानि की दीर्घ
जि लघु
ऐ दीर्घ
और डिंगल के दुवौ मे वैण सगाई जरूरी है
जैसे
ताप
ता दीर्घ
प लघु
जैसे
जाप
जा दीर्घ
प लघु
इसी तरह चौथे चरण मे होगा
दूसरे चरण के अंत मे दीर्घ व् लघु आना चाहिए
उसमें प्रथम चरण मे 11
दूसरे मे 13
तीसरे मे11
और चौथे मे 13 मात्राएँ होती है
और दूसरे व तीसरे का तुकान्त होना चाहिए
सौरठा इसके उल्टा होता है

जैसे
उनके लिए जो दोहा बनाने के इक्छुक है
और तुकान्त पहले व तीसरे चरण मे होता है
भगती रख मन भाव,सगती करियां साधना।
तनिक न आवै ताव,इण सेवग रै आजिया।।

फिलहाल आपको शॉर्ट कट ही बता रहा हूँ,
दोहा में चार पद होते हैं जो इस प्रकार से है।

13 मात्रा का प्रथम पद
11 मात्रा का दूसरा
13 का तीसरा और11 मात्रा का चौथा पद
इस प्रकार
13,11
13,11
का एक दोहा होता है।
दोहे बनाने का विधान इस प्रकार से है।
उदाहरण के लिए
प्रथम पद :– किरपा कीजै करनला
मात्रा ज्ञान:--1,12  2,2  1,1,1,2
[ तीसरा पद

अम्बा सरणों  आपरो
2,2   1,1,2   2,1,2

दूसरा पद

सगती दीजै साथ
1,12,  2,2 2,1
चौथा पद

आई  आवड़  नाथ
2,2   2,1,1   2,1
इसको इस प्रकार समझें

आई   सिंवरु   आपनै,
2,2    2,1,1   2,1,2

नित उठ सीस नवाय
1,1 1,1 2,1  1,2,1

चरणों   दीजै   चाकरी,
1,1,2   2,2     2,1,2

मेहाई   महमाय
2,2,2   1,1,2,1

और फिर चारों को मिलाने पर ये दोहा बन जायेगा

आई सिंवरु आपनै, नित उठ सीस नवाय।
चरणों दीजै चाकरी,मेहाई महमाय।।
सोरठा दूहे का उल्टा होता है।यानी

11,13
11,13
यह शुद्ध वेण सगाई युक्त दोहा है।

जैसे प्रथम चरण
आ और आ

दूसरा
न और न

तीसरा
च और च

चौथा

म और म
के मेल को वेण सगाई कहते हैं

आई सिंवरु आपनै, नित उठ सीस नवाय।
चरणों दीजै चाकरी,मेहाई महमाय।।
ये पूर्ण दोहा हो गया।
और तुकान्त मेल प्रथम और तृतीय चरण में होता है
इन चारों को मिलाये

किरपा कीजै करनला, सगती दीजै साथ।
अम्बा सरणों आपरो,आई आवड़ नाथ।।

या फिर तीनों लघु भी हो सकता है
दीर्घ मतलब आ,ई,ऊ ए, ऐ
इत्यादि
लघु मतलब अ, उ,इ
दूहे के प्रथम और चौथे चरण के अंत में

दीर्घ लघु दीर्घ आता है।

पोस्ट ठाकुर अजयसिंह राठौड़ ठिकाना सिकरोड़ी।मो.न.9928483906

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर तरीके से समझाया हुकम

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